उठ सको तो उठो अपने कद से ऊपर...
आरज़ू की सतह पर..अरमां को छूकर..
झुक सको तो झुको अहँकार के नीचे...
भूत के आगे...भविष्य के पीछे....
कह सको तो कहो सच आत्मा से...
ना बैसाखी भावों की...ना सहारा शब्दों से...
बुन सको तो बुनो ख्वाब हकीकत से....
कुछ पसीने से कुछ परिश्रम से.....
भेद सको तो भेदो अँधकार...
जैसे उजाला सूराख से होता है पार...
दे सको ध्वनी तो दो बेबसी को...
गालों पर गिरते आँसू की आहट को...
लिख सको तो लिखो कुछ ऐसा रूह पर..
कि स्याही इसकी ना हो शऱीर सी नश्वर..
जोड़ सको तो जोड़ो...
आज से..
कल को कल से..
पल को पल से...
सच को ख्वाब से...
सवाल को जवाब से...
भावना को सोच से...
जिद को समझ से....
है श्रद्धा तो आओ...
कुछ यह लीला भी बूझो...
बुलबुले में कैद इन्द्रधनुष....
जुगनु में कैद रोशनी...
छुईमुई की लाज....
और कोयल का साज़...
महसूस कर सको तो करो उस खुदा को...
साँस लेती हुई हर सदा को...
खामोश सी हर उस अदा को...
अहसास से जुड़ी भावना को...
रंगों को....रागों को....
कर सको तो करो समर्पण....
तन को...मन को....और रूह को...
अंदाज़ को...आवाज़ को....और अरमान को....
खुद को...खुदाई को....और अपने खुदा को....
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