Wednesday

जिंदगी एक रिश्ता भी, फासला भी

कागज के कोरे पने
जिँदगी तो नहीं
ना ही काले रँग की पुतन
का नाम है जिँदगी ॥

जिँदगी है एक रिशता
एक लहर का दूजे से
धूप का छाँव से
दुख का सुख से
रात का दिन से
अँधेरे का रौशनी से ॥

" जिँदगी है एक फासलाः
वो तो सूरज की
पहली किरन से शुरू होकर
उसी किरण के अस्त होने
तक का फासला है
जीवन की हद से,
मौत की सरहद तक का फासला ॥"

जिँदगी सुबह की पहली किरण है
मौत साँझ कि आखिरी किरण है
यही जिँदगी है
यही उसकी हद है
और सरहद भी
यही जिँदगी है
एक रिशता भी
एक फासला भी ॥

1 comment:

Nayans said...

Zindagi to aisa he ek paheli hai jise jakar khuda bi sujha na sakte